लाश के सौदागरों की तलाश में पुलिस की दबिशें जारी, कई और नामों के खुलासे की संभावना

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बरेली। पोस्टमॉर्टम हाउस से जुड़े लाशों के सौदे के मामले में पुलिस ने जांच तेज कर दी है। जिले में पुलिस और स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मचारियों की गंभीर संलिप्तता सामने आने के बाद पूरे सिस्टम पर सवाल उठने लगे हैं।

एसएसपी अनुराग आर्य ने मामले को गंभीरता से लेते हुए विशेष जांच टीम (SIT) का गठन किया है और लगातार दबिशें दी जा रही हैं। सूत्रों के अनुसार, आने वाले दिनों में इस गोरखधंधे से जुड़े कई और नामों का खुलासा हो सकता है।

पोस्टमॉर्टम हाउस से खुला रैकेट का राज

मामला तब तूल पकड़ा जब पोस्टमॉर्टम हाउस में तैनात कर्मचारी सुनील और एक सिपाही का वीडियो सामने आया, जिसमें दोनों एक व्यक्ति से लाश के सौदे की बात कर रहे थे। इसी वीडियो के जरिए खुलासा हुआ कि अज्ञात शवों को मेडिकल कॉलेजों को मोटी रकम में बेचा जाता था, जबकि कागजों में उनका अंतिम संस्कार दिखा दिया जाता था।

तत्कालीन कोतवाल का नाम आया सामने, महकमे में हलचल

जांच में यह भी सामने आया कि इस पूरे रैकेट को कई अधिकारियों की मौन स्वीकृति प्राप्त थी। पोस्टमॉर्टम हाउस कर्मचारी ने बातचीत के दौरान एक पूर्व कोतवाल का नाम भी लिया, जिसने कथित तौर पर इन गतिविधियों पर आंखें मूंद रखी थीं। हालांकि पूर्व प्रभारी ने सार्वजनिक बयान देने से इनकार करते हुए कहा कि “अब इस पर कुछ कहना ठीक नहीं होगा।”

कैसे चलता था मौत का यह कारोबार?

अज्ञात शवों को पोस्टमॉर्टम के बाद परिजनों के नाम पर दिखाकर कागजों में अंतिम संस्कार कर दिया जाता था। अंतिम संस्कार के नाम पर मिलने वाला सरकारी बजट (3400 रुपये) भी हड़प लिया जाता था। इसके बाद शवों को 40 हजार से डेढ़ लाख रुपये तक मेडिकल कॉलेजों को बेच दिया जाता था। शवों की सप्लाई में एंबुलेंस चालक, फार्मासिस्ट, पुलिसकर्मी और अन्य कर्मचारी शामिल थे। हर स्तर पर कमीशनखोरी और बंदरबांट तय थी।

अब तक की कार्रवाई:

वीडियो में दिखे पोस्टमॉर्टम कर्मचारी को निलंबित कर दिया गया है। संबंधित थाने के सिपाही के खिलाफ जांच चल रही है। एसएसपी ने उच्चाधिकारियों से रिपोर्ट तलब की है। पुलिस और स्वास्थ्य विभाग में कई अफसरों की भूमिका की जांच चल रही है।

मेडिकल कॉलेज भी रडार पर

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, लाशों की आपूर्ति प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों तक की जाती थी। इनमें से कई संस्थानों की मान्यता बनाए रखने के लिए “प्रैक्टिकल बॉडी” की जरूरत होती है, जिसे पूरा करने के लिए ये गैरकानूनी रास्ता अपनाया गया।

क्या कहते हैं कानून और मानवाधिकार?

भारतीय संविधान मृत व्यक्ति को भी सम्मानजनक अंतिम संस्कार का अधिकार देता है। IPC की धारा 297 और BNS की धारा 301 के तहत, शवों से छेड़छाड़ और अपमान गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है। मानवाधिकार आयोग ने लावारिस शवों को लेकर स्पष्ट गाइडलाइन जारी की हैं, जिनका उल्लंघन इस मामले में उजागर हुआ है। बरेली से उजागर हुआ ‘मौत का ये खेल’ केवल एक जिला नहीं, बल्कि सिस्टम की चुप्पी पर बड़ा सवाल है। अब यह देखना बाकी है कि पुलिस और प्रशासन इस गोरखधंधे को जड़ से खत्म कर पाते हैं या फिर हमेशा की तरह कुछ ‘छोटे’ लोगों को ही बलि का बकरा बनाया जाएगा।

विकास यादव
Author: विकास यादव

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