आंखों में आंसू, माथे पर तिलक और दिल में दुआओं का सैलाब… जिला जेल में कैद भाइयों ने भी मनाई भाई दूज

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बरेली। भाई दूज का पावन पर्व इस बार जेल की ऊंची दीवारों और लोहे की सलाखों को भी पिघला गया। जहां बाहर पूरे शहर में बहनों ने भाइयों के माथे पर तिलक लगाकर लंबी उम्र की कामना की, वहीं बरेली की सेंट्रल जेल में यह नजारा कुछ और ही था, भावनाओं से भरा, आंखों को नम करने वाला और रिश्तों के अटूट बंधन को दर्शाने वाला।

जेल के बंद दरवाजों के भीतर जब बहनें अपने कैद भाइयों से मिलीं, तो किसी की आंखें छलक उठीं, किसी के हाथ कांप उठे, और किसी की जुबान बस इतना ही कह पाई “भैया, अपना ध्यान रखना…”

जिला जेल प्रशासन के अनुसार, भाई दूज पर कुल 674 बंदियों से मिलने 1005 महिलाएं और 440 बच्चे पहुंचे। कई बहनें अपने छोटे बच्चों के साथ आईं, जिन्होंने पहली बार अपने मामा या चाचा को सलाखों के पीछे देखा। कई बंदी भाइयों ने बहनों के हाथ से तिलक लगवाकर कहा “अबकी बार बाहर मिलेंगे, फिर कोई गलती नहीं होगी।”वहीं जेल के महिला बैरक में भी भावनाओं का वही माहौल था। यहां छह निरुद्ध महिलाओं और छह पुरुष बंदियों ने भाई दूज का पर्व मनाया। पांच लोगों ने अपनी बंदी बहनों से मुलाकात की। राख और तिलक से सजे चेहरे यह बता रहे थे कि जेल भले तन को रोक सकती है, लेकिन रिश्तों की डोर को नहीं तोड़ सकती।

जेलर ने बताया, “त्योहार के मौके पर सुरक्षा व्यवस्था कड़ी रखी गई थी। बहनों के लिए विशेष इंतज़ाम किए गए ताकि वे अपने भाइयों को तिलक कर सकें और कुछ पल साथ बिता सकें।”

इस पूरे आयोजन ने एक बार फिर यह एहसास कराया भाई-बहन का रिश्ता सबसे पवित्र होता है। जेल की सलाखें भी इसके स्नेह और आशीर्वाद के आगे कमजोर पड़ जाती हैं।

विकास यादव
Author: विकास यादव

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