बरेली। ऐतिहासिक रामगंगा घाट पर इस बार का चौबारी मेला बरेली की आस्था, परंपरा और संस्कृति का अद्भुत संगम बन गया है। कार्तिक पूर्णिमा के पावन पर्व पर बुधवार तड़के से ही श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। सूरज की पहली किरणों के साथ ही पूरा घाट “हर हर गंगे” और “जय मां गंगे” के जयकारों से गूंज उठा।
शताब्दी वर्ष का मेला बना यादगार
इस वर्ष चौबारी मेला अपने 100वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। सौ साल की इस परंपरा में पहली बार घाट पर इतनी भव्यता और जनभागीदारी देखने को मिली। बदायूं रोड से लेकर रामगंगा किनारे तक आस्था का जनसागर बहता नजर आया।
सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम 500 पुलिसकर्मी तैनात
श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए प्रशासन ने अभूतपूर्व सुरक्षा व्यवस्था की है। मेले में 500 पुलिसकर्मी, होमगार्ड, एनडीआरएफ टीमें और महिला पुलिस की विशेष ड्यूटी लगाई गई है। एसपी सिटी मानुष पारीक मेले की सुरक्षा की निगरानी कर रहे हैं। इसके अलावा मेला थाना, मेला चौकी और खोया-पाया केंद्र भी स्थापित किया गया है।
तंबुओं का शहर बना घाट
रामगंगा किनारे का चौबारी मेला इन दिनों ‘तंबुओं का शहर’ बन गया है। जहां तक नज़र जाती है, सिर्फ तंबू ही तंबू दिखाई देते हैं। दूर-दराज़ जिलों बदायूं, पीलीभीत, शाहजहांपुर और फर्रुखाबाद से श्रद्धालु पहुंचकर डेरा डाले हुए हैं।
भक्ति और उल्लास का संगम
मेले में आस्था के साथ-साथ मनोरंजन की झलक भी हर कोने में दिखाई दे रही है। झूलों पर बच्चों की खिलखिलाहट गूंज रही है तो मौत के कुएं पर दर्शक तालियां बजा रहे हैं। सैकड़ों स्टॉलों से जलेबी, समोसे और गन्ने के रस की खुशबू हवा में घुली है।
डूबते सूरज संग दीपों की झिलमिलाहट
शाम ढलते ही जब श्रद्धालु दीप प्रवाहित करते हैं, तो पूरी रामगंगा सुनहरी रौशनी से जगमगा उठती है। जलते दीपों की पंक्तियां मानो आस्था की लौ बनकर आसमान तक संदेश भेजती हैं कि बरेली का चौबारी मेला आज भी श्रद्धा की जीवित परंपरा है।
Author: विकास यादव
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